15 अगस्त 1947 की रात क्या माहौल रहा होगा इसका अंदाज़ा हम नहीं लगा सकते..शायद आप भी नहीं..
पर जो भी उस पल को जीने वाले ख़ुशनसीब थे..और उनसे भी ज़्यादा उस पल के लिए मरने वाले...उनका कलेजा गदगद हो उठा होगा!..
देश में पटाखे जलाने भर के पैसे तो शायद अंग्रेजों ने छोड़े ही न होंगे..पर मेरा दिल कहता है..उस रात भले किसी रसोई में चूल्हा न जला हो..हर घर की देहलीज़ पे एक दिया ज़रूर जला होगा..और उस दिए की आग ने उन अनगिनत बहनों, माओं, और बेवाओं के ज़ख्मों को कुछ ठंडक दी होगी..जिनके अपनों ने उनका, हमारा(नेताजी! आपका भी) कल बेहतर बनाने के लिए बलिदान दिया..
आज 15 अगस्त 2011, देश कुछ अलग तरह के झंझावातों से जूझ रहा है…पर लड़ाई अब भी शायद आज़ादी के लिए ही लड़ी जा रही है..हाँ ये आज़ादी हमें किसी और से नहीं..खुद से ही पानी है..अपनी अवसरवादी, काम चलाऊ सोच से और न जाने अपने ही भीतर छिपे किन किन आतताइयों से…कल तक जो कांग्रेस और बीजेपी के नाम पे लड़ रहे थे..उन्ही में से कई होंगे जो आज अन्ना हजारे के नाम पे लड़ रहे हैं..बस बैनर बदल लिया है..जन लोकपाल चाहिए सबको, पर जो आज आँखें बंद करके उसका समर्थन (और एक हद तक वे भी जो विरोध) करते हैं..उन्हें शायद ये ख़याल नहीं आ रहा कि ये कानून सरकार के नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ है ..और भाई साहब भ्रष्टाचार का लाइसेन्स सिर्फ सरकारों के पास नहीं है..इसके चंगुल में हमारे "आज़ाद देश" कि जड़ें जकड़ चुकी हैं..चालान की रसीद न लीजिये..दरोगा जी पैसे कम लेंगे..आपको नेता होने की ज़रुरत नहीं.. बच्चा पास नहीं हो पाया..अगले क्लास में बढ़ाना हो..हाथ पैर जोड़ लीजिये ( जी! सिर्फ पैसे देने से भी बात यूँही नहीं बन जाती)..ऐसे और न जाने कैसे कैसे सच इस आज़ाद भारत में आज़ादी से निभाई जाने वाली परंपरा के रूप में उभर के सामने आए हैं…
अभी रंग दे बसंती देखी..फिल्म तो 2006 की है..भावोत्प्रेरित इस फिल्म ने तब भी किया था..पर कुछ घंटों बाद जो बात ज़हन में बनी रही वो थी “सु”कर मेरे मन को (मेरे कुछ हुमराज़ों कि आँखें चमक उठी होंगी)..आज पर वापस आते हैं..अबकी फिल्म देखी तो एक नयी नवेली बात याद आई..कुछ ही दिन पहले एक MIG और एक Jaguar विमान तकनीकी खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गए..चालक मारे गए..पर क्या यूँ बेमौत मारे जाना ही वो हसरत थी जो उन्हें वायुसेना तक खींच कर ले गई..?? शायद...बिल्कुल नहीं..!!
फिल्म अच्छी है…देख कर दिल का खून उबल उठता है..शायद ये लेख उसी का असर हो!!..पर पता नहीं क्यों इस उबलते खून की छींटें दिमाग़ तक नहीं पहुँच पातीं..!!
आज 15 अगस्त की रात है..देश आज़ाद है..इसी दिन की सुबह कल फिर आएगी..और मैं!! देर रात तक जागा हूँ तो शायद नींद अच्छी आएगी..बस इन उनींदी आँखों में एक सवाल लेकर सोऊंगा..कि उस रात से इस रात तक का सफ़र मैंने..हममे से ज़्यादातर ने क्या वाकई आज़ादी में गुज़ारा है??..इस तरह स्वार्थी न सही..स्वकेंद्रित होकर !!..खैर! जवाब मिले न मिले, 65 साल के इस देश कि अब याददाश्त कमज़ोर हो चली है..सवाल फिर नहीं पूछा जाएगा..और रोज़ कि तरह ये रात भी बीत जाएगी..हाँ मैं देर रात तक जागा हूँ, तो नींद अच्छी आएगी!!